What Does Shodashi Mean?

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कस्तूरीपङ्कभास्वद्गलचलदमलस्थूलमुक्तावलीका

इस सृष्टि का आधारभूत क्या है और किसमें इसका लय होता है? किस उपाय से यह सामान्य मानव इस संसार रूपी सागर में अपनी इच्छाओं को कामनाओं को पूर्ण कर सकता है?

The Mahavidya Shodashi Mantra aids in meditation, maximizing inner serene and aim. Chanting this mantra fosters a deep sense of tranquility, enabling devotees to enter a meditative condition and hook up with their interior selves. This profit enhances spiritual awareness and mindfulness.

Shiva employed the ashes, and adjacent mud to all over again type Kama. Then, with their yogic powers, they breathed lifetime into Kama in this kind of way that he was animated and really effective at sadhana. As Kama continued his sadhana, he steadily acquired electric power over Other folks. Fully conscious on the possible for challenges, Shiva played along. When Shiva was questioned by Kama to get a boon to obtain 50 % of the power of his adversaries, Shiva granted it.

Considering that among his adversaries were Shiva himself, the Kama received enormous Shakti. Lacking discrimination, the man began developing tribulations in every one of the three worlds. With Kama obtaining much energy, and With all the Devas struggling with defeat, they approached Tripura Sundari for aid. Taking over all her weapons, she charged into struggle and vanquished him, Therefore conserving the realm of the Gods.

The Mahavidya Shodashi Mantra is also a powerful Resource for all those in search of harmony in personal relationships, Resourceful inspiration, and direction in spiritual pursuits. Frequent chanting fosters emotional healing, enhances intuition, and assists devotees entry better wisdom.

कैलाश पर्वत पर नाना रत्नों से शोभित कल्पवृक्ष के नीचे पुष्पों से शोभित, मुनि, गन्धर्व इत्यादि से सेवित, मणियों से मण्डित के मध्य सुखासन में बैठे जगदगुरु भगवान शिव जो चन्द्रमा के अर्ध भाग को शेखर के रूप में धारण किये, हाथ में त्रिशूल और डमरू लिये वृषभ वाहन, जटाधारी, कण्ठ में वासुकी नाथ को लपेटे हुए, शरीर में विभूति here लगाये हुए देव नीलकण्ठ त्रिलोचन गजचर्म पहने हुए, शुद्ध स्फटिक के समान, हजारों सूर्यों के समान, गिरजा के अर्द्धांग भूषण, संसार के कारण विश्वरूपी शिव को अपने पूर्ण भक्ति भाव से साष्टांग प्रणाम करते हुए उनके पुत्र मयूर वाहन कार्तिकेय ने पूछा —

॥ अथ श्री त्रिपुरसुन्दरीवेदसारस्तवः ॥

भगवान् शिव ने कहा — ‘कार्तिकेय। तुमने एक अत्यन्त रहस्य का प्रश्न पूछा है और मैं प्रेम वश तुम्हें यह अवश्य ही बताऊंगा। जो सत् रज एवं तम, भूत-प्रेत, मनुष्य, प्राणी हैं, वे सब इस प्रकृति से उत्पन्न हुए हैं। वही पराशक्ति “महात्रिपुर सुन्दरी” है, वही सारे चराचर संसार को उत्पन्न करती है, पालती है और नाश करती है, वही शक्ति इच्छा ज्ञान, क्रिया शक्ति और ब्रह्मा, विष्णु, शिव रूप वाली है, वही त्रिशक्ति के रूप में सृष्टि, स्थिति और विनाशिनी है, ब्रह्मा रूप में वह इस चराचर जगत की सृष्टि करती है।

श्वेतपद्मासनारूढां शुद्धस्फटिकसन्निभाम् ।

कर्त्री लोकस्य लीलाविलसितविधिना कारयित्री क्रियाणां

वाह्याद्याभिरुपाश्रितं च दशभिर्मुद्राभिरुद्भासितम् ।

श्रीमद्-सद्-गुरु-पूज्य-पाद-करुणा-संवेद्य-तत्त्वात्मकं

सर्वभूतमनोरम्यां सर्वभूतेषु संस्थिताम् ।

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